विज्ञान व धर्म – परस्पर विरोध या पूरकता | Science and religion – conflict or complementarity | Essay for BPSC mains

विज्ञान व धर्म – परस्पर विरोध या पूरकता

‘विज्ञान व धर्म’ यह दो शब्द सुनते ही इनके बीच संबंधों को लेकर विभिन्न मतों / बहसों का विचार आता है। जहाँ कुछ लोग इन्हें एक दूसरे का विरोधी मानते हैं तो कुछ इन्हें एक दूसरे का पूरक । परंतु किसी भी निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले हमें सभी पक्षों पर उचित विचार करना चाहिए।

सर्वप्रथम हमें विज्ञान व धर्म के अर्थ पर विचार करते हैं । तत्पश्चात् इनके संबंध पर विचार करेंगे। विज्ञान वह व्यवस्थित ज्ञान है जो विभिन्न प्रयोग, परिकल्पना अध्ययन द्वारा तथ्यों, सिद्धान्तों को जानने का प्रयास करती है। वहीं धर्म वह जिसे धारण किया जा सके अर्थात धर्म वह है कितने जो सबको धारण किए हुए है। अर्थात यह अनुभव, आस्था, नियम इत्यादि पर आधारित विचारधारा है।

सर्वप्रथम हम धर्म व विज्ञान के विरोधी स्वरूप पर चर्चा करेंगे। कई-कई बार धार्मिक कट्टरता, अंधविश्वास व धर्म के बाहरी स्वरूप के चलते धर्म, विज्ञान के विरुद्ध ही नजर आता है।

उदाहरणतया जब कॉपरनिकस, गैलेलियो इत्यादि ने सौरमण्डल व पृथ्वी के गोल होने संबंधी अवधारणा दी तब उस समय के धर्मगुरुओं ने न केवल इसका विरोध किया, बल्कि इनके प्रति हिसांत्मक रवैया भी अपनाया। परंतु अंततः विज्ञान अपने तर्कों द्वारा यह सिद्ध करने में सफल रहा। इसी तरह विभिन्न धर्मों की अनेक रूढ़ीवादी मान्यताओं को विज्ञान के तर्कों द्वारा आसानी से खारिज किया जा सकता है। इस अर्थ मे धर्म व विज्ञान एक दूसरे के विरोधी नजर आते है। अर्थ व उद्देश्य के आधार पर देखें तो विज्ञान एक दोधारी तलवार की तरह कार्य करता है। यह एक तरफ ऊर्जा द्वारा बिजली भी बना सकता है तो दूसरी तरफ परमाणु बम द्वारा धरती का विनाश भी कर सकता है। वहीं सभी धर्मों का मूल उद्देश्य दया, करुणा व प्रेम को बढ़ाते मनुष्य मात्र के कल्याण से है। तभी तो ली बेन ने कहा है-

“विज्ञान ने हमें सच्चाई तक पहुंचाने का भरोसा दिया है। इसने हमें शांति या सुख तक पहुँचाने का आश्वासन कभी नहीं दिया । “

इस तरह एक अंतर विरोध इनकी पद्धति पर भी है जहाँ धर्म आस्था व अनुभव का विषय है वहीं विज्ञान, तर्क व सिद्धान्त पर आधारित उपयुक्त परिस्थि परिप्रेक्ष्यों पर विचार करने पर धर्म व विज्ञान परस्पर विरोधी नजर आते हैं। परंतु हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि धर्म व विज्ञान परस्पर विरोधी हो वास्तव में यह तो एक दूसरे के पूरक है। दुनिया के सबसे महानतम वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के अनुसार-

“धर्म, कला और विज्ञान वास्तव में वृक्ष की शाखा प्रशाखाएँ हैं।”

और वास्तव में यह शाखाएँ एक दूसरे के पूरक होकर मानवता रूपी वृक्ष को उचित आधार प्रदान करती है।

पूरकता पर विचार करें तो विज्ञान व धर्म आदिकाल से ही साथ-साथ चले आ रहें हैं। जिस तरह विज्ञान को बढ़ावा मिलता रहा, धर्म भी पूरक भूमिका में बने रहे।

विज्ञान के प्रवेश से धर्म में भी तार्किकता प्रवेश होता है। उससे अंधविश्वास, रुढीवादिता का कर्मकाण्ड इत्यादि का बहिस्कार होता है

वह धर्म का कल्याणकारी स्वरूप ओर निखरकर सामने आता है। इसी तरह विज्ञान में धर्म के प्रवेश से विज्ञान में नैतिकता का प्रवेश होता है । | विज्ञान का प्रयोग मानव कल्याण के लिए हो विनाश से यह धर्म द्वारा प्रदान की गई नैतिकता द्वारा ही संभव हो पाता है। महात्मा गांधी के अनुसार

“ विज्ञान को विज्ञान तभी वह शरीर, मन कह सकते हैं जब और आत्मा की भूख मिटाने की पूरी ताकत रखता हो”

और विज्ञान को यह दिशा धर्म ही प्रदान करता है । इसी तरह धर्म के लिए वे नई खोज का आधार बनते हैं। इस तरह अंततः ये एक-दूसरे में जो रहस्यवाद व कल्पनात्मक अध्यात्मिक कल्पनाएँ होती है विज्ञान को ही सत्यापित करते हैं।

यदि ये दोनो विरोधी होते तो दोनो ही एक विध्वंस रूप ले लेते, यदि धर्म में विज्ञान की तार्किकता न होती तो धर्म बस एक अंधविश्वास, कट्टरता व आडंबर युक्त नियम व्यवस्था बनकर रह जाता। वैसे ही विज्ञान को धर्म का निर्देशन न मिले तो यह मानवता या यूँ कहें पूरी पृथ्वी को समाप्त करने वाला हथियार भी बन सकता है।

अतः वास्तव में ये विरोधी न होकर पूरक ही है दोनों का अस्तित्व एक साथ बना रहता है तथा दोनों अंततः मानव कल्याण के उद्देश्य से प्रेरित रहते हैं। आइंस्टीन के अनुसार- ” धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है, विज्ञान के बिना धर्म अंधा है ।”

 

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