भारत में न्यायिक सुधार : चुनौतियाँ व सुधार | Judicial Reforms in India: Challenges and Reforms | Essay for BPSC mains

भारत में न्यायिक सुधार : चुनौतियाँ व सुधार

“कितने जालिम हैं ये दुनिया वाले, घर से निकलो तो पता लगता है। दो कदम पर अदालत है लेकिन, सोच लो ! वक्त बड़ा लगता है । “

उपर्युक्त पक्तियाँ वर्तमान न्याय व्यवस्था में व्यापक कमियों पर तीक्ष्ण कटाक्ष करती है। परंतु आँकड़ो को देखें तो यह कटु सत्य भी साबित होती है। लोकसभा में केन्द्र सरकार द्वारा दिए गए एक जवाब के अनुसार भारत में वर्तमान 4.70 करोड़ मामले अदालतों में लंबित है । ” जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड” की विचारधारा पर चिंतन करें तो वर्तमान मे न्यायिक सुधार आवश्यक प्रतीत होते हैं।

शासन को सुचारू रूप से चलाने हेतु आवश्यक है कि इसका प्रत्येक अंग यथा विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका उचित ढंग से कार्य करती रहे। वर्तमान में इसी परिप्रेक्ष्य को देखते हुए न्याय प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है परंतु इसके समक्ष अनेक चुनौतियाँ भी विद्यमान है।

भारत में न्यायिक सुधार : चुनौतियाँ

उपर्युक्त विश्लेषण मे हमनें जाना कि न्यायिक मामलों में पेंडेंसी (लंबिता) एक अहम् मुदा है। परंतु इसमें सुधार के समक्ष चुनौति न्यायिक नियुक्ति संबंधी है।

पूर्व. चीफ जस्टिस N.V. रमन्ना के अनुसार न्यायिक क्षेत्र मे अधिकांश जन संबंधी पद रिक्त है। जिससे उचित जज उपलब्ध नहीं हो पाते। भारत में प्रति 10 लाख लोग पर 2 जज है जिससे कि न्यायिक व्यवस्था पर अतिरिक्त भार का निर्माण होता है।

रिक्तियों के अतिरिक्त नियुक्ति प्रक्रिया संबंधी चुनौति बनी हुई है। उच्च न्यायलयों में काले- जियम द्वारा नियुक्ति प्रणाली पर हाल में कई सवाल उठा है साथ ही निचली अदालतों में भी नियुक्ति में पारदर्शिता का अभाव पाया जाता है । इस पारदर्शिता के अभाव का प्रभाव न्याय की गुणवत्ता पर पड़ता है।

इसके अतिरिक्त न्यालयों के आधुनीक तकनीक व अवसंरचना के अभाव का सामना भी किया जाता है। जिससे कोर्ट प्रबंधन में समस्या का सामना करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त कानूनों की जटिलता व पुराने कानून भी एक अहम मुद्दा है।

भारतीय न्यायिक प्रणाली की एक ओर समस्या से जवाबदेहिता सुनिश्चित न होना भी है । RTI से कानून प्रणाली बाहर है इसलिए वास्तविक दशा का उचित ज्ञान नही हो पाता। इसके साथ ही जजों के जाँच करने की भी कोई तटस्थ व्यवस्था नहीं है। साथ ही कई बार भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे भी सामने आते है।

इसके अतिरिक्त न्यायिक प्रणाली अत्यधिक खर्चीली होना भी एक अहम मुद्दा है जिससे की एक आम आदमी वकीलों व इस प्रक्रिया का खर्च नहीं उठा पाता। अतः आवश्यकता है न्यायिक प्रणाली सभी के पहुँच योग्य हो।

उपर्युक्त मामलों के अतिरिक्त जो एक नया मुद्दा बनकर उभरा है वह है ‘न्यायिक अतिक्रमण’ का। बढ़ते न्यायिक अतिक्रमण ने ‘शक्ति- पृथक्करण के सिद्धान्त’ को ही चुनौति दी है जिससे कि शासन के अन्य स्तम्भ की शक्तियाँ भी प्रभावित होती ।

अतः शासन व्यवस्था को सुचारू बनाए रखने, संविधान के आदर्शों को बनाए रखने व जनता का न्यायप्रणाली में विश्वास बनाए रखने की लिए आवश्यक है कि न्यायिक प्रणाली में उचित सुधार हो।

भारत में न्यायिक सुधार : समाधान :-

सर्वप्रथम न्यायिक नियुक्ति व्यवस्था में तीव्रता व जजों की संख्या में वृद्धि करने की आवश्यकता है। इस हेतु अखिल भारतीय न्यायिक सेवा का सृजन किया जा सकता है। साथ ही उच्च व उच्चतम न्यायलयों में कॉलेजियम व्यवस्था में उचित पारदर्शिता व जवाबदेहिता लाने की भी आवश्यकता है ताकि न्यायिक सेवा की गुणवत्ता प्रभावित न हो। इस नियुक्ति व स्थानांतरण की प्रक्रिया पारदर्शी होगी तो जज बिना किसी काय दबाव के कार्य की सकेंगे।

लंबित मामलों को ध्यान में रखते कार्य दिवसों की संख्या बढाई जानी चाहिए व साथ ही विशेष मामलों हेतु समय सीमा का भी उचित प्रावधान होना चाहिए। इसके अतिरिक्त फास्ट ट्रैक कोर्ट, मध्यस्थता कोई, अधिकरण, लोक अदालत आदि की संख्या को बढ़ाना चाहिए ताकि न्यायलयों पर अतिरिक्त बोझ को कम किया जा सके।

इसके अतिरिक्त न्यायिक सेवा में तकनीक भी एक अहम उपाय साबित हो सकती सुधार हेतु है। ई-कोर्ट, सेवा पोर्टल, NeGD, जज प्रयोग कर न्यायिक सेवा की गुणवत्ता को बढ़ाया जा सकता है। व न्यायालय, प्राकलन, केस डेटा रिकॉर्ड, इत्यादि में तकनीक का

इसके अतिरिक्त न्यायिक सेवा तक सभी की पहुँच भी सुनिश्चित होनी चाहिए। NALSA इस संदर्भ उचित कदम है परंतु जागरुकता अभाव, प्रो बोनो सर्विस समय निश्चित न होना इत्यादि के चलते उतना प्रभावी नहीं हो पाया है यह अतः जागरुकता बढ़ाने की आवश्यकता है।

न्यायिक अतिरेक की समस्या से बचने हेतु आवश्यक है कि न्यायधीश उचित न्यायिक संयम का पालन करें। जस्टिस पी. एन. भगवती के अनुसार “सरकार के प्रत्येक अंग को अपनी शक्तियों की सीमाओं में रहकर कार्य करना चाहिए तथा कानून अथवा संविधान द्वारा उनपर आरोपित दायित्वों को पूरा करना चाहिए ।

इस तरह वर्तमान में न्यायिक प्रणाली द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों का उचित समाधान त्वरित रूप से किए जाने की आवश्यकता है। क्योंकि कहा गया है “दोषी को सजा व निर्दोष को न्याय सही समय पर मिलना चाहिए तभी समाज की न्याय व्यवस्था आदर्श न्याय व्यवस्था कहलाएगी”।

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