भारतीय संस्कृति आज : एक मिथक या एक वास्तविकता | Indian culture today: a myth or a reality | Essay for BPSC mains

” भारतीय संस्कृति आज : एक मिथक या एक वास्तविकता’

विश्व को ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ व ‘सर्वे भवन्तु सुखिन’ जैसे पाठ पढ़ाने वाली तथा अध्यात्मिकता, शांति संबंधी मूल्यों को विकसित करने वाली भारतीय संस्कृति को अतीत में विश्वगुरु जैसे खिताब प्राप्त थे। तो मन में विचार उठता है कि क्या आज भी भारतीय संस्कृति अपने आदर्शों को बनाए रखने में सफल है? क्या आज भी भारतीय समाज में उसके मूल्य उसी तरह विकसित है जो अतीत में थे या आज ये एक मिथ्या है? यह विचार भी उठता है कि संस्कृति का कौन-सा रूप आज व्यापत है क्या यह दिखावा मात्र है या सच में लोग आज अपनी संस्कृति का पालन करते हैं?

इन सभी उत्तरों को जानने से पहले हमें भारतीय संस्कृति के तथा उसके मूल्यों के बारे में एक समझ विकसित करनी होगी जिससे कि वर्तमान व्यवस्था का मूल्यांकन हो सके।

सिंधु घाटी सभ्यता के रूप में निकली भारतीय संस्कृति वैदिक, मौर्य, गुप्त, सल्तनत व मुगलकाल के विभिन्न रूपों व मूल्यों को स्वयं में समाहित करते हुए विकसित हुई है। इसमें दया, करुणा, प्रेम, बंधुत्व, महिला सम्मान, सामाजिक उत्तरदायित्व, अहिंसा, सर्वधर्म समभाव, विविधता म एकता जैसे न जाने कितने मूल्यों का समावेश है जो इसे मनातन व विविध रूप प्रदान करते हैं।

यूनान, मिश्र सीमा सब मिट गए जहाँ से । अब भी बाकी है नामों निशां हमारा ॥

कुछ तो बात रहा है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी । सदियों रहा है दुश्मन, दौरे जहाँ हमारा ॥

ऐसे दिल दहला देने वाले आँकड़ो को देखकर यही लगता है कि महिला सम्मान तो बस एक ढकोसला बन कर रह गया है।

समाज की अन्य बुराइयों को देखने से पहले द्य समाज को ही देखगें तो पाएंगे की समाज ही रतनी असमानताओं से युक्त है कि संविधान के उद्देश्य ( समानता, स्वतंत्रता, सामाजिक-आर्थिक कल्याण) मात्र उद्देश्य बन कर ही रह गए हैं।

भारत की लगभग 70% संपत्ति पर मात्र व्यक्तियों का अधिकार है। इसके अतिरिक्त अमीर-गरीब, शहरी-ग्रामीण, डिजिटल डिवाइड, महिला पुरुष संबंधी न जाने कितनी असमानताएँ भारतीय समाज में प्रवेश कर गई है जो भारतीय संस्कृति के समानता संबंधी तत्व की सफलता पर प्रश्न चिह्न उठाते हैं तथा मन में सवाल पैदा करते हैं कि

“कहाँ छुपा के रख दूँ मैं अपने हिस्से की शराफत जिधर भी देखता हूँ उधर बेइमान खट्टे है। क्या खूब तरक्की कर रहा है अब देश देखिए, खेतों में बिल्डर, सड़क पर किसान बड़े हैं ।

समाज से निकलकर अब अगर अपनी चारों तरफ के पर्यावरण पर नजर दौड़ाएँ तो पाते है कि विकास की अंधाधुंध दौड़ में भारतीय संस्कृति के पर्यावरणीय मूल्य मानो दिल्ली की प्रदूषित हवा में जैसे उड़न छू ही है गए अतीत में भारतीय संस्कृति में पेड़ों की खातिर अपनी जान तक न्यौछावर करने वाली अमृता देवी के देश में आज पेड़ ऐसे काटे जा रहे जैसे इनका कोई महत्व ही न हो।

साथ ही बढ़ते भौतिकवाद का असर भारतीय मानसिकता पर स्पष्ट दिखाई दे रहा है। एकल परिवार, मानसिक तनाव, ड्रग्स सेवन, आत्महत्या जैसे बढ़ते मामलों को देखकर लगता है कि ये मूल्य

सर्वप्रम हम उस पक्ष पर गौर करते हैं, कि किस परिप्रेक्ष्य में भारतीय संस्कृति में कभी न थे। भारतीय संस्कृति एक मिथ्या साबित हो रही है।

वर्तमान में बढ़ते सम्प्रदायवाद, सामाजिक असहिष्णुता, धार्मिक अलगाववाद जैसे तत्वों को देखकर लगता है मानो “भारतीय गंगा जमुना’ तहजीब तो सिर्फ शब्दों व संविधान के आदर्शों मे ही सिमट कर रह गई है। किसी भी घटना को धार्मिक परिप्रेक्ष्य में देखने की प्रवृति को निरंतर बल मिलता जा रहा है।

ऐसे ही महिलाओं का शोषण, बढ़ते बलात्कार, दहेज प्रताड़ना, घरेलू हिंसा, जैसे बढ़ते मामलों को देखकर लगता है कि ‘यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता’ जैसे विचार न जाने कहाँ धूमिल हो गए हैं।

NCRB रिपोर्ट के अनुसार लगभग सलाना दहेज के कारण मृत्यु के 7000 आँकड़े आए है तथा प्रति घटें लगभग 2 महिला दहेज के कारण मृत्यु का शिकार हो रही है।

इसी प्रकार भारतीय राजनीति, अर्थव्यवस्था, समाज की इन बुराइयों को देखकर तो मन में यही विचार आता है कि भारतीय संस्कृति आज एक मिया का रुप ले है चुका है परंतु किसी भी निर्णय पर पहुंचने से पहले हर सिक्के के दोनों पहलुओं पर विचार करना चाहिए। हमें पहलुओं संस्कृति उन पर भी गौर करना चाहिए वो भारतीय को आज भी उजागर करते हैं।

वैश्वीकरण के इस दौर में बढ़ती प्रतिस्पर्धा में जहाँ हर देश अपने हित को ध्यान में रखकर स्वार्थवाद को दर्शा रहा है वहीं भारत की विदेश नीति में सहयोग, शांति व वसुधैव कुटुम्बकुम जैसे तत्व आज भी दिखते हैं । यथा कोरोना के समय जब अमेरिका जैसे देश वैक्सीन जमा-खोरी पर ध्यान दे रहे थे वहीं भारत, अफ्रीका जैसे कई जरूरतमंद देशों को कई चिकित्सकीय सुविधा वैक्सीन उपलब्ध कराई। यह भारतीय संस्कृति की जीवतंता ही है।

भारतीय समाज विभिन्न विविधता से युक्त होते हुए भी आज एक बना हुआ है राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा हो तो सभी भारतीय अपने गिले-सिकवे भूलकर एक हो जाते हैं। आज भी चाहे कितने भी विवाद हो परंतु भारतीय विविधता के साथ भारत एक देश के रूप में कभी विखडित नही हुआ। जिसे देखकर यही लगता है कि-

‘प्यार का दूसरा नाम है मेरा भारत,

अनेकता में एकता का प्रतीक है मेरा भारत । चंद गैरो की सुनना मुझे गँवारा नहीं,

हिंदू हो या मुस्लिम सभी को प्यारा है मेरा भारत ।

भारतीय समाज में देखें तो महिलाएँ आज हर क्षेत्र में अपना वर्चस्व दिखा रही है चाहे वो विज्ञान ( कल्पना चावला, सिरिशा बांदला, ) राजनीति (निर्मला सीतारमण, प्रियंका गांधी, स्मृति इरानी), खेल (मीराबाई चानू, अवनि लेखरा) या प्रशासन कुछ भी हो। इन पदों पर पहुंचना भारतीय संस्कृति में महिला संवेदी भाव को ही दर्शाता है।

ऐसे ही भारतीय अर्थव्यवस्था में कल्याण कारी योजनाओं, CSR संबंधी व्यवस्थाओं का होना भारत की सामाजिक आर्थिक कल्याण संबंधी भाव को दर्शाता है।

इसी तरह अर्थव्यवस्था से निकलकर पर्यावरण को देखे तो पाएंगे कि अर्थव्यवस्था व पर्यावरण में संतुलन आज भी दिखाई दे रहा है।

जैसे जलवायु परिवर्तन के प्रति भारतीय प्रतिवद्धता, सौर ऊर्जा पर बल, पर्यावरणीय प्रबंधन में समाज की भागीदारी ( पवित्र उपवन), रीति रिवाजो व यथार्थ मे पर्यावरण से रिश्ता ; जो कि दर्शाता है कि भारतीय पर्यावरणीय मूल्य आज भी भारतीय संस्कृति में विद्यमान है।

इसके साथ ही भारतीय संस्कृति की जो एक अनुपम विशेषता है वह है “परिवर्तनन को समाहित करना”। यह आज और भी उत्कृष्ट रूप ले चुकी है। वर्तमान भारतीय संस्कृति ने विश्व की विभिन्न संस्कृतियों के बहुत से मूल्यों को खुद मे समावेश किया है। समलैंगिको के प्रति संवेदनशीलता के नए तत्व इसी का उदाहरण है।

इसी तरह भारतीय संस्कृति आज व्यक्ति व समाज के हर पहलू यथा राजनीति (सर्वदल उपस्थिति), अर्थव्यवस्था, (आर्थिक योजनाएँ), धर्म (धर्म निरपेक्षता), पर्यावरण (मानव-पर्या. सहजीवन), सांस्कृतिक (सांस्कृतिक विविधता व एकता) ने अपने अस्तित्व को बनाए रखने में सफल साबित हुई है।

अतः वर्तमान की कुछ कमियों को दूरकर तथा पुनः संस्कृति के तत्वों तथा आधुनिकता के मिश्रण का निर्माण कर भारत को पुनः विश्वगुरु बनाया जा सकता है भारतीय संस्कृति की वास्तविकता की और विकसित किया जा सकता है। तत्पश्चात सिर्फ एक ही गुँज होगी- “सारे जहाँ से अच्छा, हिंदोस्ता हमारा’

 

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