समावेशी विकास : चुनौति व समाधान | Inclusive development: challenges and solutions | Essay for BPSC mains

समावेशी विकास : चुनौति व समाधान

“सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग भवेत।” वैदिक काल से चली आ रही उपर्युक्त पंक्तियां सभी के कल्याण या यूँ कहें समावेशी विकास के अमूर्त रूप को ही दर्शाती है।

शाब्दिक अर्थ की बात करें तो समावेशी विकास का अर्थ है सभी का समान विकास। यह विकास की प्रक्रिया व परिणाम मे सभी की समान भागीदारी सुनिश्चित करने की अवधारणा ही है। इस तरह समावेशी विकास, विकास की वह प्रक्रिया है जो विकास के लाभ को समाज के अंतिम पायदान पर स्थित लोगों तक पहुंचाने, उनका जीवन स्तर ऊँचा उठाने तथा उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल करने का प्रयास करती है।

समय-समय पर विभिन्न राष्ट्रों ने इस विकास को प्राप्त करने के लिए अनेकों प्रयास किए हैं। भारत में भी विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओ (11 वीं, 12 वीं) व विभिन्न कार्यक्रमों [ मनरेगा, खाद्य सुरक्षा, समग्र शिक्षा, स्वास्थ्य मिशन] के माध्यम से इसे प्रयास प्राप्त करने का किया है परंतु कुछ चुनौतियों के चलते समावेशी विकास को पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं किया जा सका है।

समावेशी विकास : चुनौतियाँ

आज समावेशी विकास प्राप्त करने के समक्ष सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, लैंगिक, क्षेत्रीय इत्यादि चुनौतियाँ व्याप्त है।

इसी संदर्भ में लैंगिक असमानता भी समावेशी विकास के समक्ष प्रमुख चुनौतियों में से एक बना हुआ है। जब तक आधी जनसंख्या विकास की प्रक्रिया व परिणाम में शामिल नही होगी तब तक समावेशी विकास का स्वप्न अधूरा ही माना जाएगा। इस संदर्भ में वर्तमान में समलैंगिकों ( LGBTQ +) समुदाय को भी वंचना का सामना करना पड़ता है अत: यह चुनौति भी गंभीर है।

लैंगिक चुनौतियों के अतिरिक्त क्षेत्रीय चुनौतियाँ भी समावेशी विकास में बाधक है। ग्रामीण – शहरी अंतराल इसी का उदाहरण है। इसके साथ ही पिछड़े क्षेत्र व विकसित क्षेत्र का अंतर भी मुख्य चुनौति हैं ।

इन चुनौतियों से निपटने के लिए उचित समाधान ढूंढे जाने की आवश्यकता है

समावेशी विकास : समाधान :-

समाधान ढूंढने के लिए भी हमें सभी पक्षों पर विचार करना होगा। सर्वप्रथम विकास हेतु सामाजिक अवसंरचना का होना अत्यंत आवश्यक है। शिक्षा व स्वास्थ्य पर GDP का खर्च बढ़ाने के साथ-साथ शिक्षा को समावेशी बनाने की आवश्यकता है। शिक्षा व स्वास्थय का सार्वभौमिकरण कर समावेशी विकास की नींव रखी जा सकती है।

इसके पश्चात् आर्थिक विकास पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। संसाधनों के समतापूर्ण वितरण के साथ-साथ प्रत्येक क्षेत्रक की वृद्धि आवश्यक है विशेषतः कृषि क्षेत्रक की। इसके अतिरिक्त अर्थव्यवस्था के औपचारीकरण की आवश्यकता है। साथ ही बेरोजगारी की समस्या का हल निकालना भी अत्यंत आवश्यक है। इस संदर्भ में MSME व स्टार्ट अप तंत्र को उचित बढ़ावा दिया जाना चाहिए। लिंग समावेशिता पर भी विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। नीतियों, कानूनों व योजनाओं को हर लिंग के प्रति संवेदनशील नजरिया रखते हुए लागू किया जाना चाहिए। जेन्डर बजटिंग, महिला शिक्षा व सशक्तिकरण, आर्थिक रूप से महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता है।

सामाजिक चुनौतियों की बात करें तो समाज में वर्ग विभाजन (जाति व्यवस्था) एक प्रमुख चुनौति है। जाति व्यवस्था के कारण विकास में तथा कथित निम्न वर्ग के लोग भाग नही ले पाते और उन्हे अपने विकास हेतु उचित अवसर नहीं मिल पाते। इसी तरह राजनैतिक असमानता भी समावेशी विकास के समक्ष प्रमुख चुनौति बनी हुई है। राजनीति व प्रशासन में सिर्फ कुछ ही लोगों की भागीदारी होने से प्रमुख निर्णय अपने समाज/वर्ग/ पार्टी को देखकर ही लिए जाते हैं।

इसी तरह आर्थिक चुनौतियों की बात करें तो आर्थिक असमानता सबसे प्रमुख चुनौति है। वर्ल्ड इन्कैवलटी रिपोर्ट के अनुसार विश्व के 0.1% लोगो के पास कुल सम्पति का 13% है। भारत में भी ऐसी ही स्थिति देखने को मिलती है। भारत के शीर्ष 10 प्रतिशत लोगों के पास कुल सम्पति का 70% है। इसी आय की असमानता व निर्धनता के चलते समाज के सभी लोगों उचित शिक्षा व स्वास्थय उपलब्ध नही हो पाते तथा आर्थिक विकास नही हो पाता है।

आर्थिक चुनौतियों में बेरोजगारी, कृषि का पिछड़ापन, कौशल अभाव, आधारभूत संरचना अभाव भी प्रमुख कारकों में से एक है।

इसके अतिरिक्त क्षेत्र आधारित समावेशिता पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। पिछड़े क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देते हुए क्षेत्र आधार विकास पर बल दिया जाना चाहिए। साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त किए जाने की आवश्यकता है ताकि शहरी पलायन रोकने के साथ – साथ गाँवों को आत्मनिर्भर बनाया जा सके।

इस तरह हर क्षेत्र पर विशेष ध्यान हुए व उचित राजनीतिक इच्छा शक्ति के सहारे संतत व समावेशी विकास को प्राप्त किया जा सकता है ।

 

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