इतिहास वैज्ञानिक मनुष्य के रुमानी मनुष्य पर विजय हासिल करने का एक सिलसिला है । History won is a series of victories won by the scientific man over the romantic man | Essay for BPSC mains

इतिहास वैज्ञानिक मनुष्य के रुमानी मनुष्य पर विजय हासिल करने का एक सिलसिला है ।

इतिहास को सभी विषयों की जननी कहा जाता है । क्योंकि मौटे तौर पर इतिहास उसी अतीत का ज्ञान है जो व्यापक रूप में भौतिक जगत से लेकर सम्पूर्ण प्राणी जगत से संबंधित कार्यों का ज्ञान प्रदान करता हो। इस संदर्भ में ‘डेन ब्राउन’ का एक प्रसिद्ध कथन यह भी है कि “इतिहास विजेताओं द्वारा लिवा जाता है” । सामान्यतया यह माना इसकी जाता है कि एक विजेता वो होता है जो कल्पना व यथार्थ | में से यथार्थ अर्थात् वैज्ञानिक वास्तविकता को चुनता है। इस तरह वैज्ञानिक मनुष्य तक का सफर ही इतिहास है।

इस निबंध में हम जानेंगे कि कैसे इतिहास रुमानी मनुष्य पर वैज्ञानिक मनुष्य के विजय हासिल करने की कहानी है ? रुमानी मनुष्य व वैज्ञानिक मनुष्य में क्या अंतर है? क्यों अंतत वैज्ञानिक मनुष्य की विजय होती है इतिहास रचा जाता है।

सर्वप्रथम हम रुमानी मनुष्य की विशेषताओं को जानने का प्रयाप्त करेंगे। रूमानी मनुष्य वह होता है जो यथथि को न देखकर हमेशा कल्पना में खोया रहता है। जो तर्कों पर विश्वास न करके अपनी कल्पना में अधिक विश्वास करता है। जो सपने तो जरूर देवता है लेकिन उन्हें पूरा करने की क्षमता नही रख पाता ।

दूसरी तरफ वैज्ञानिक मनुष्य किसी भी कार्य को करने से पहले यथास्थिति व तर्कों का विश्लेषण करता है। तत्पश्चात दृढनिश्चय से युक्त होकर कार्य करता है। साथ कार्य के दौरान आई रुकावट को किसी अलौकिक शक्ति से न जोड़कर तर्कों से जोड़ता है व उसका हल निकालता है। अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण वह रुमानी मनुष्य पर विजय प्राप्त करने में सफलता हासिल करता है। तभी कहा गया

‘कुछ लोग है जो वक्त के साँचों में ढल गए। कुछ लोग है जो वक्त के साँचों को बदल गए।’

यह कि अपने तार्किक सोच के कारण सुकरात आज भी विचारों के कारण जिंदा है। यह उनकी उन सभी रूमानियत व उस समय के लोगों पर विजय ही है।

ऐसा ही उदाहरण भारतीय परिप्रेक्ष्य में भी देवा जा सकता है। जब भारतीय समाज अस्पृश्यता, वर्ण-व्यवस्था जैसी कुप्रथा से जकड़ गया था तथा अंधविश्वास हर जगह फैल रहा था तब गौत्तम बुद्ध ने अपने तर्कों से इसका वंडन किया व इसी ने मे समाज सुधार को प्रेरित कि

मध्यकाल में तो इसके अनेकों उदाहरण देवे जा सकते है। जब रजिया सुल्तान बनी तभी महिला होने के कारण उनका विरोध हुआ परंतु अपनी उचित कुटनीति व साहस के कारण वह उत्तराधिकार पाने में सफल रही।

इसी तरह का उदाहरण पानीपत – 1 के युद्ध में भी देखा जा सकता है। जहाँ एक तरफ लोदी वंश दुनिया जीत लेने व अपने सैन्य बल अधि क होने के कारण कल्पना के सागर में खोए हुए थे साथ बाबर को कमतर आँक रहे थे। बाबर ने इसी अवसर का लाभ लेते हुए अपनी तुलुगम पद्धति व उचित रणनीति से युद्ध को अपने पक्ष में करके जीत हासिल की। ऐसा ही उदाहरण प्लासी व बक्सर के युद्ध में देवने को मिलता है। अग्रेंजो को महज एक व्यापारिक कंपनी समझ कर कमतर आँकने व यथथि का ज्ञान न होने के कारण ही 3 राजाओं की संयुक्त फौज अग्रेजों के समक्ष हार गए। यहाँ कल्पना व रुमानियत मे वोए रहना व यर्थाथ विश्लेषण न कर पाना ही हार का मुख्य कारण था ।

मध्यकाल से आधुनिक काल से बढ़ने के पर हम पाते हैं कि अंग्रेजों ने भारतीयों नस्ल आधार पर नीचा बताकर उनके आत्मविश्वास

को तोड़ना चाहा। लेकिन विवेकानंद, महात्मा गांधी, राजा राममोहन राय लाला लाजपतराय जैसे सुधारकों ने अपने वैज्ञानिक सोच व तर्कों से

निबंध का विश्लेषण उचित रूप करने के लिए हम इतिहास के उनका खंडन किया और भारतीयो मे स्वतंत्रता व स्वराज के सपने के

कुछ उदाहरणों से इसका सत्यापन करने का प्रयास करेंगे।

एथेंस के प्राचीन दार्शनिक सुकरात उन्ही वैज्ञानिक मनुष्य में से एक थे। उस समय एथेंस समाज अंधविश्ववासों से जकड़ा था। तब ने अपने तर्कों से उनका वंडन किया। इसके चलते उन पर सुकरात युवाओं को गुमराह करने व धर्मपरायणहीनता का आरोप लगा। और तो और अंत में उनको जहर का प्याला पीना पड़ा । लेकिन रुचिकर बात

बीज को बोया । यह उनका साहस, दृढनिश्चय व तार्किक सोच का ही परिणाम था। महात्मा गांधी के ही शब्दों में-

“जिस काम को करने में डर लगता है उसको करने को नाम साहस है। मुट्ठीभर सकंल्पवान लोग, जिनकी अपनी लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा बदल सकते हैं। “

इस तरह हमने जाना कि वैज्ञानिक मनुष्य किसी पर आश्रित न होकर अपने चिंतन व दृढ़निश्चय को आधार बनाता है व यथास्थिति से अनजान रहता है व निर्णय लेने में अपने तर्कों को आधार न बनाकर अपने विश्वास व कल्पना को आधार बनाता है । अर्थशास्त्र में भी राजा को कल्पना में न रहकर ‘शाम, दाम, दण्ड भेद’ की नीति को अपनाने को कहा गया है।

इसी तार्किक सोच का उदाहरण आधुनिक काल बाबासाहेब अम्बेडकर का भी मिलता है। इन्होंने सामाजिक कुरीतियों को नियति न समझकर अपने तर्कों से इनका वंडन किया से चले आ रहे अंधविश्वास को तोड़ा। इसी संदर्भ में निम्न ज्ञान पक्तियाँ उचित बैठती किसी की चार दिन की जिंदगी सौ काम करती है। किमी की सौ बरस की जिंदगी में नही हो पाता।

वैश्विक इतिहास में रूमानी मनुष्य पर वैज्ञानिक मनुष्य की जीत को अनेक उदाहरण मिल जाएगें । लेनिका के साम्यवाद के साफल न हो पाने के पीछे उसका रुमानी ( रोमांटिस्थिम) ही था । वहाँ साम्यवाद सिर्फ पेपर मे ही बचा रह गया था व यथार्थ का ज्ञान न हो पाना ही उसकी असफलता का कारण बना।

इस तरह इतिहास के विभिन्न उदाहरणों से हमने जाना कि इतिहास वास्तव में वैज्ञानिक मनुष्य के रुमानी मनुष्य पर विजय पाने का सिलसिला है और यह कालवंड मे स्वयं को दोहराता रहा है व वर्तमान मे भी अनवरत रूप से जारी है। इस जीत का कारण ही यर्थाथ का कारण पीढीयों से चले आ रहे अधिश कुरीति को तोड़ना है व उस कल्पना पर यथथि का विजय पाना है तभी तो कहा गया है-

“लीक लीक गाड़ी चले,

लीक ही चले करत ।

लीक छोड़ तीन चलें,

शायर, सिंहं सपूत ॥

 

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