रचनात्मक चिंतन सफलता का प्रथम सोपान है। Creative thinking is the first step to success | Essay for BPSC mains

रचनात्मक चिंतन सफलता का प्रथम सोपान है।

” किसी की चार दिन की जिंदगी

सौ काम करती है।

किसी की सौ बरस की जिंदगी

में कुछ नहीं ही पाता ॥ “

उपर्युक्त पक्तियाँ पढ़कर मन मे यह सवाल आता है कि वह क्या है जो दो लोगों के जीवन में इतना बड़ा अंतर ला देती है। वह क्या है जो सफलता को निर्धारित करती है। वह क्या है जो नए आयाम पैदा करती है। इन सभी सवालों का जवाब है ‘रचनात्मकता’ तभी तो रचनात्मक चिंतन को सफलता का प्रथम सोपान माना गया

इस निबंध में आगे बढ़ने से पहले यह जानेंगे कि रचनात्मक चिंतन होता क्या है? रचनात्मक चिंतन से तात्पर्य उस सोच/चिंतन क्षमता से है जिसमें व्यक्ति किसी विषय विशेष के समायान हेतु अथवा कुछ नया आविष्कृत करने हेतु नए तरीके से चिंतन करता है।

अब हम जानेंगे कि रचनात्मक चिंतन सफलता का प्रथम सोपान कैसे है। सफलता हमेशा निरंतर प्रयासरत रहने तथा कुछ बाधा आने पर पुनः नए तरीके से कार्य करने पर निर्भर करती है। अतः रचनात्मक चिंतन वाला व्यक्ति समस्या समाधान हेतु नए तरीके खोज निकलाता है वह अपने इसी चिंतन के सहारे वह समस्या को हल कर सफलता की सीढ़ी चढता है। उदाहरणतया किस ने ही सोचा होगा कि पेड़ से सेब गिरने की सामान्य घटना पर चिंतन करके एक व्यक्ति भौतिक के मूलभूत नियमों का आविष्कार कर सकता है। यह न्यूटन का रचनात्मक चिंतन ही था जो आज उन्हें सबसे सफलतम भौतिक बिंदु के रूप में स्थापित करता है।

भाप से ईंजन बनाने का कार्य हो या पहिए से गाड़ीयाँ बनाने तक का सफर, पक्षियों को देख विमान बनाने का कल्पना सफर हो या मनुष्य के अनुरूप ही रोबोट बनाने का, इन सभी के पीछे मनुष्य का रचनात्मक चिंतन ही रहा है। यह रचनात्मक चिंतन ही था जिसने सदियों से चली आ रही परम्पराओं में नया आयाम जोड़ा तभी तो एडवर्ड डी बोनो ने कहा है कि-

” इसमें कोई संदेह नहीं है कि रचनात्मक चिंतन सदी का सबसे महत्वपूर्ण मानव संसाधन है। रचनात्मकता के बिना, कोई प्रगति नहीं होगी और हम हमेशा उसी पैटर्न को दोहराते रहेगे ।”

इस तरह न केवल व्यक्ति की सफलता अपितु किसी समाज / देश की सफलता भी रचनात्मक चिंतन पर ही निर्भर करती है। वर्तमान

मे जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों से निपटने के लिए इसी रचनात्मक चिंतन की आवश्यकता है। कैसे हम अपशिष्ट निपटान, प्लास्टिक प्रबंधन इत्यादि में रचनात्मक चिंतन द्वारा नए समाधान ढूंढ सकते हैं।

हमने रचनात्मक चिंतन के महत्व को तो जान लिया परंतु यह भी उतना ही अहम प्रश्न है कि सभी में इस रचनात्मक का विकास कैसे किया जाए।

इस हेतु सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि बचपन से ही रचनात्मकता बढ़ाने हेतु उचित वातावरण का निर्माण हो। बच्चों में सिर्फ रहने- दोहराने की प्रवर्ति का विकास न करके उनकी जिज्ञासाओं को उचित अवसर प्रदान करना चाहिए। क्योंकि जिज्ञासा ही रचनात्मक चिंतन का आधार है। इसी तरह हमें भी हर विषय के संबंध अलग-अलग पक्षों से विचार करना चाहिए ताकि हमारी रचनात्मक चिंतन को आधार मिल सके। यह नया चिंतन ही सफलता के नए द्वार खोलेगा।

विचार का एक पक्ष यह भी है कि मनुष्य तभी सफल हो पाता है जब वह अपने अंदर की सक्रियता व रचनात्मकता को बनाए रखता है तथा अपने चिंतन के सहारे अपनी दिनचर्या मे नए आयामों का प्रवेश करता है। क्योंकि बिना रचनात्मक चिंतन के व्यक्ति का न विकास होगा न ही उसे सफलता मिलेगी। पाश के शब्दों में-

“सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना तड़प का न होना

सब कुछ सहन कर जाना घर से

और काम से लौटकर घर आना “

इसके साथ ही रचनात्मक चिंतन मनुष्य को मानसिक तनाव व अवसाद से बचाता है जिसके कारण वह अपने कार्य पर उचित रूप से ध्यान दे पाता है। अतंत उसे सफलता मिलती है।

अतः हमे सफलता प्राप्त करनी है तो बरसो से चली आ रही रीति रिवाज के स्थान पर कुछ नया रचनात्मक चिंतन करना होगा और यही रचनात्मक चिंतन सफलता की सीढ़ी बनेगा। तभी तो कहा गया है “लीक लीक गाड़ी चले,

लीक ही चले कपूत ।

लीक छोड़ तीन चलें,

शायर, सिहं सपूत ॥”

 

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