जहाज बंदरगाह के भीतर सुरक्षित होता है, परंतु इसके लिए तो वह होता नहीं है।
बात महाभारत की है, कौरवों की सेना ने द्रोणाचार्य के नेतृत्व में चक्रव्यूह का निर्माण किया। वीर अभिमन्यू उसमें प्रवेश करना तो जानता था लेकिन बाहर निकलना नही जानता था । वह चाहता तो अपने परिजनों का इंतजार कर चक्रव्यूह से पीछे मुड़ सकता था लेकिन फिर भी उसने अपने कर्त्तव्य पथ पर चलते हुए प्रवेश करने का निर्णय किया व युद्ध मे अपना योगदान देते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ । यहाँ अभिमन्यु ने सुरक्षा को न चुनकर अपने कर्तव्य को चुना क्योंकि यही उनके अस्तित्व का कारण था ।
इसी तरह एक जहाज भी बंदरगाह के भीतर सुरक्षित होता है परंतु इसके लिए तो वह होता नही है। बल्कि वह तो होता तुफानों और लहरों से लड़कर समुन्द्र को पार करने के लिए। विपरीत परिस्थिति में भी हर राह को पार करने के लिए। सार यह है कि हर वस्तु, मानव विचार का एक उद्देश्य होता है जिसके लिए वह बना होता है उसे अपनी सुरक्षा अपेक्षा अपने उद्देश्य की पूर्ति पर केन्द्रित होना चाहिए। उदाहरणतया राजकुल में जन्मे गौतम बुद्ध चाहते तो अपना जीवन भोगविलास व राजकीय ऐशोआराम में बिता सकते थे परंतु उन्होने दुसरा रास्ता चुना जिसके लिए उनका जन्म हुआ था वह लोगों का मार्गदर्शन किया। सच ही कहा गया है-
“असल जिंदगी की आपके शुरुआत आराम स्थान ( कम्फर्ट (जोन) से निकलकर ही होती है “।
इसी तरह बैरिस्टर के रूप में बाबा साहेब अम्बेडकर चाहते तो अपना जीवन में एक आरामदायक शैली अपना सकते थे लेकिन उन्होने दलितों को न्याय दिलाने का संकल्प लिया व अंतत स्वतंत्रता व समानता वाले ‘संविधान’ का निर्माण किया। क्योंकि भारत के ‘संविध न जनक’ की भूमिका के लिए ही उन्होने अपनी सुरक्षा की अपेक्षा उन्होंने अपनी सुरक्षा की अपेक्षा THAN इस राह को चुना।
इसी तरह महात्मा गांधी, लाला लाजपतराय, भगत सिंह, सुभाषचंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू आदि से स्वतंत्रता सेनानियों ने अनेक कष्टों को सहकर भारतीय स्वतंत्रता पाने अपना योगदान दिया। सरदार वल्लभभाई पटेल के ही शब्दो में–
“यह सच है कि पानी में तैरनेवाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहने वाले नहीं, मगर ऐसे लोग कभी तैरना भी नही सीव पाते””
यथा हाल पूरा विश्व कोरोना महामारी से ग्रस्त था। सभी लोग घरों में थे व सुरक्षित रहने का प्रयास कर रहे थे। लेकिन इसी महामारी के दौरान विभिन्न डॉक्टर्स, नर्स, पुलिसकर्मी ने अपनी जान की परवाह किए बिना अपने कर्त्तव्यों को पूर्ति की व कोरोना को हराने मे अपना योगदान दिया । वे चाहते हो अपने घरों में सुरक्षित रह सकते थे लेकिन इसके लिए वो नही बने थे। वो बने थे मानवता की सेवा के लिए। तभी आज उन्हें ‘हीरोज ऑफ द वर्ल्ड व कोरोना वारियर्स की संज्ञा दी जाती है। विसेंट वॉन गॉग के शब्दों में–
” दुनिया में काम करने के लिए आदमी को अपने भीतर मरना पड़ता है। आपने इस दुनिया में सिर्फ खुश होने नहीं आया । वह पूरी मानवता के लिए महान चीजें बनाने को आया है। दुनिया में वह उदारता प्राप्त करने आया है और देने भी “
इसी तरह महिलाओं के परिप्रेक्ष्य में देखें तो एक समय था जब महिलाओं को घर से बाहर निकलना उचित नहीं समझा जाता था। ना ही उन्हें शिक्षा का अधिकार था ना ही सम्पति का। परन्तु आज महिलाएँ हर क्षेत्र में अपनी भूमिका निभा रही है। वह भी आज एक जहाज की आने वाली लहरों व तुफानों से रही है। हाल ही में NDA (सेना) मे महिलाओं की सैन्य भर्ती भी इसी का उदाहरण है जिस क्षेत्र को कभी महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं माना गया, आज उसी क्षेत्र में महिलाएँ अपना परचम दिवा रही है।
“कोमल है कमजोर नहीं तु, शक्ति का नाम ही नारी है। जग को जीवन देने वाली,भी तुझसे हारी है।
सेना के परिप्रेक्ष्य में विचार करें तो के समय अगर एक सैनिक वुद सुरक्षित रखना चाहे तो वह पीछे हट सकता है परंतु उसके लिए वह बना नही होता। उसका अस्तित्व तो होता है अपनी अंतिम साँस तक युद्ध में डटे रहने के लिए व मौका मिले तो देश के खातिर प्राण न्यौछावर करने के लिए । यहाँ उसका कर्त्तव्य उसे यह करने की प्रेरणा देता है। नेहरू जी के शब्दों में-
“अपने को संकट में डालकर कार्य संपन्न करने वालों की विजय होती है। कायरों की नहीं””
संकट में खुद को डालकर इतिहास में भी कई राजाओं ने अपना नाम अमर किया है। यथा जब अलेक्जेंडर अपने विश्व विजेता बनने विश्लेषण को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देवने का प्रयास करें तो हम के अभियान पर निकला था । तब उसने भारत की तरफ भी कूच किया अनेको उदाहरण पाते हैं।
पोरस की सेना अलेक्जेंडर के समीप काफी छोटी थी परंतु फिर भी उसने लड़ने का निश्चय किया। युद्ध में पोरस की हार हुई परंतु अलेक्जेंडर पोरस की वीरता से इतना प्रभावित हुआ कि उसका राज्य उसे वापिस प्रदान कर दिया। तभी तो कहा गया है-
” लहरों से डरकर नौका पार नही होती कोशिश करने वालों की कभी हार नही होती।
हमने हर (वस्तु, मनुष्य) जहाज की उपयोगिता को तो विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से जान लिया । परंतु हर सिक्के के दो पहलू होते है। अत: यह सच है कि जोखिम लेने की क्षमता आवश्यक है परंतु सुरक्षा की भावना भी उतनी ही जरुरी है। एक जहाज पर लावों रुपए वर्च करके उसका निर्माण किया जाता है अतः उसके संसाधन की सुरक्षा भी आवश्यक है।
उदाहरणतया कोई देश अपनी अर्थव्यवस्था मे उदारीकरण व निजीकरण को बढ़ावा देता है जैसे भारत ने 1991 के सुधारों के समय दिया। परंतु आवश्यकता पड़ने पर वह अपने घरेलू उद्योगों व अर्थव्यवस्था में संतुलन बनाए रखने हेतु सुरक्षात्मक उपाय ( टैरिफ व नॉन टैरिफ बैरिर्यस) भी अपनाता है। यहाँ जोखिम व सुरक्षा में उचित तालमेल होना आवश्यक है।
इस संदर्भ में हम कह सकते हैं, कि किस समय जहाज को बंदरगाह मे रखना है व किस समय जोखिम लेना विश्लेषण है यह उचित विश्लेषण के बाद निर्धारित करना चाहिए। सुरक्षा के बिना वैसे ही अर्थहीन हैं जैसे जोखिम के बिना सुरक्षा। अतः मध्यममार्ग अपनाते हुए एक संतुलित राह की आवश्यकता है।
” अति का भला न बोलना,
अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना
आते की भली न धूप ॥”